माता तुम्हें निवेदन इतना बुद्धि मेरी स्थिर ही रखना नामस्मरण से दूर न जाऊँ बढ़ूँ मैं आगे चाहे जितना विघ्नराज गणपति नमस्ते 'अर्चित' को बस इतना वर दे हरिहर के गुण गाए जाऊँ जीवन पथ पर चलते चलते हरिहर अक्षर अज अविनाशी हरिहर मथुरा हरिहर काशी हरिहर विष्णु हरिहर जिष्णु तेज, धर्म, बल सब गुण राशि हरिहर सेवक कष्ट विमोचन हरिहर आदि अनादि सुदर्शन चित्त की ज्वाला शान्त करे वो हरिहर चिंतन हरिहर चिंतन हरिहर खेचर हरिहर गोचर रूद्र घोर विभु हरिहर सुन्दर नमस्कार नित करता तुमको हे करुणाकर हे करुणाकर |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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