गणपतिजी को जल में विसर्जित करते करते एक क्षण को उसके हाथ कंपकपाये मन भारी हुआ नयन कुछ नम हो आये न जाने क्यों थम गयी वो तभी उसके मन में एक आवाज़ आयी उन्हें जाने दे उनके जाने का समय हो गया माई अश्रु मत बहा सन्देश समझ गणपति तो तब भी थे जब तू इन्हें घर नहीं लायी थी तब भी रहेंगे जब तू इन्हें विसर्जित कर देगी इतना ही नहीं अगले वर्ष फिर किसी नयी मूर्ति में तुम गणपति को अपने घर में देखोगे और समय आने पर पुनः विसर्जित करोगे क्या यह जीवनक्रम जैसा नहीं है जीव का शरीर में आना फिर शरीर छोड़ जाना फिर किसी नए शरीर में आना इस क्रम का चलते जाना सहसा उसे लगा जैसे गणपति जी कह रहे हों मैं मूर्ति में अवश्य हूँ परन्तु मूर्ति मैं नहीं हूँ मैं तो कोई और हूँ मूर्ति के नष्ट होने से मैं नष्ट नहीं होने वाला ऐसे ही तुम भी हो स्वयं को ऐसे ही जानो फिर वह नहीं रुकी गणेश जी की प्यारी मूर्ति उसने समुद्र की लहरों में विसर्जित कर दी परन्तु भावों का क्या करे नयन तो अब भी थे कुछ भरे भरे पर वह नमी थी निश्छल प्रेम की भक्ति की |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
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