राक्षसराज रावण और दशरथपुत्र श्री राम के बीच हो रहे घनघोर युद्ध में समझ ही नहीं आता था कौन विजयी होगा. कभी रावण श्री राम को घायल कर देता तो कभी श्री राम रावण पर हावी हो जाते परंतु कोई योद्धा पराजय स्वीकार करने को तैयार नहीं था. भगवान राम के मन में तब बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने रावण पर ऐसे बाण चलाये कि वह बस शक्तिहीन होकर रथ पर गिर ही गया था और क्या पता उसका अंत तभी हो जाता परंतु उसका सारथि बड़ी ही चतुराई से उसको बचाकर युद्धभूमि से बाहर ले गया. रावण को मरना स्वीकार था परंतु यह स्वीकार नहीं था कि कोई उसे कायर कहे अतः अपने सारथि को उसने पुनः युद्धभूमि में रथ ले चलने को कहा. उधर भगवान राम चिंतामग्न थे. किसी भी प्रकार रावण का अंत न होता था. युद्ध के कारण शरीर भी थक रहा था. और इधर रावण पुनः युद्ध के लिए उपस्थित था. पुरुषोत्तम श्रीराम भी ऐसे में चिन्ता कर रहे थे. यही राम अवतार की विशेषता थी. उन्होंने सब कुछ एक मानव की तरह किया. रथ नहीं था तो बिना रथ के रावण के साथ युद्ध करने लगे. देवराज इन्द्र ने रथ भिजवाया तो रथ पर से भी युद्ध किया. रावण के वारों को सहन भी किया और उसे भी घायल किया. उस महासमर को बहुत से देवता और ऋषि भी देख रहे थे. भगवान राम को ऐसे चिंता मग्न देखकर परमतपस्वी महर्षि अगस्त्य उनके पास आये और उन्हें एक गोपनीय स्तोत्र का उपदेश दिया. उस स्तोत्र का नाम था आदित्यह्रदय स्तोत्र. दक्षिण भारत में यह बहुत लोकप्रिय है. महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम से कहा - हे राम! ऐसे समय में आदित्यहृदयं स्तोत्र का पाठ करो जो शत्रुओं का नाश करने वाला और चिंता, शोक मिटा कर मंगल करने वाला है. भगवान सूर्य जो कि सभी से पूजित है (चाहे देव हो या असुर), जो स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, पितर आदि है, सबकी उत्पत्ति के कारण हैं उनका ध्यान करते हुए इस स्तोत्र का तीन बार जप करो. महर्षि अगस्त्य ने भगवान सूर्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस स्तोत्र का जप करने से राम अवश्य ही रावण पर विजय प्राप्त करेंगे. अगस्त्यजी द्वारा ऐसा निर्देश दिए जाने से भगवान राम के मन से चिंता जाती रही. उन्होंने भगवान सूर्य की ओर मुख करके महर्षि अगस्त्य के निर्देशानुसार आदित्यहृदय स्तोत्र का जप किया और सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया. तदनन्तर सभी चिंताओं से मुक्त हो कर और एक नए उत्साह से युक्त हो कर भगवान राम ने रावण को रणभूमि में मार गिराया. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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