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भगवान शिव का पंचाक्षर स्तोत्र - (हिंदी) भावार्थ सहित

20/5/2016

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​शिव पंचाक्षर स्तोत्र आदि शंकराचार्य जी ने रचा था. आज बहुत लोग इसका पाठ करते हैं. कई लोग महामृत्युंजय पूजा प्रारम्भ करने से पहले भी इस स्तोत्र का पाठ करते हैं. जैसा मैंने गुरुजनो और बड़ों से सुना है, ॐ नमः शिवाय में 'ॐ' बीजमंत्र है और नमः शिवाय को पंचाक्षरी मंत्र कहा जाता है. इसी को आधार बना शंकराचार्य जी ने इस पंचाक्षरी स्तोत्र की रचना की. 

​नमः शिवाय में जो पांच अक्षर हैं, उन्हीं पांच अक्षरों में से एक एक अक्षर को एक एक तत्त्व के समान मानते हैं. इस प्रकार इस मंत्र में पाँचों तत्त्व समाहित हैं अतः "ॐ नमः शिवाय" यह एक पूर्ण मंत्र है. शंकराचार्य जी ने एक एक अक्षर के लिए शिव के गुणों का वर्णन करने वाले एक एक श्लोक की रचना की. अतः इस स्तोत्र में पांच श्लोक हुए. 

​शंकराचार्य जी को नमस्कार करते हुए आपके सामने इस स्तोत्र का अर्थ करने का प्रयास करता हूँ. 
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Photo Source: (santabanta.com) http://media1.santabanta.com/
​नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै 'न'काराय नमः शिवाय ॥


नागों का हार धारण करने वाले, तीन नेत्रों वाले, भस्म से अपने अंग को रंगने वाले, ईश्वरों में महान (महा + ईश्वर = महेश्वर) जो दिगंबर अर्थात नग्न है (कई लोग दिगंबर का अर्थ 'चारों दिशाएं जिनके वस्त्र हैं' ऐसा भी करते हैं), 'न'कार से सम्बोधित होने वाले ऐसे भगवान शिव को नमन है.   

यहां नागेंद्र शब्द का प्रयोग हुआ है. मेरे विचार से इसका अर्थ नागों में श्रेष्ठ अथवा नागों के राजा लेना चाहिए. अतः नागेन्द्रहाराय अर्थात श्रेष्ठ नागों का हार धारण करने वाले, ऐसा कह सकते हैं.​
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मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै 'म'काराय नमः शिवाय ॥

 
जो मन्दाकिनी के जल से तथा चन्दन से चर्चित (चन्दन लगाए हुए) हैं, नंदी तथा अन्य भूतगणों के नाथ महेश्वर हैं, मंदार और अन्य बहुत प्रकार के पुष्पों से जिनका पूजन किया जाता है ऐसे 'म'कार से सम्बोधित होने वाले भगवान शिव को नमन है. 

शंकराचार्य जी ने मन्दाकिनी नदी ही क्यों कहा? मन्दाकिनी नदी केदारनाथ के समीप किसी स्थान से निकलती है और आगे जाकर अलकनंदा में मिल जाती है. इन्हीं दो नदियों का संगम आगे जाकर भागीरथी नदी से होता जिससे भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा(जी) बनती है. 

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Photo Source: http://www.harekrsna.com
शिवायगौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै 'शि'काराय नमः शिवाय ॥


जैसे सूर्य के आने से कमल खिल उठते हैं ऐसे ही देवी गौरी के मुखमंडल को प्रफुल्लित करने वाले, दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले नीलकंठ भगवान जो नंदी पर सवार होते हैं (वृषध्वज) उन 'शि'कार से सम्बोधित होने वाले भगवान शिव को नमन है.

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनींद्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै 'व'काराय नमः शिवाय ॥


यहां तीन श्रेष्ठ ऋषियों के नाम हैं - वशिष्ठ, कुम्भोद्भव और गौतम. कुम्भोद्भव महर्षि अगस्त्य को कहा जाता है. आदि शंकराचार्य ने इन तीनों को मुनींद्र अर्थात मुनियों में इंद्र कह कर सम्बोधित किया है. इन तीन मुनियों से भगवान शेखर अर्चित हैं अर्थात्​ पूजित हैं. 

जो चन्द्र, अर्क और वैश्वानर के भी लोचन हैं ऐसे भगवान शिव को नमन है जो 'व'कार से सम्बोधित होते हैं. ज्योतिष में अर्क (सूर्य का एक नाम), चन्द्र को नेत्रों का करक माना गया है. वैश्वानर (अग्नि का एक नाम) के अनेक गुणों में एक गुण प्रकाशमान करने का भी है. 

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । 
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै 'य'काराय नमः शिवाय ॥


भगवान यक्ष के स्वरुप वाले हैं. हाथ में त्रिशूल और सिर पर जटा धारण करने वाले सनातन भगवान शिव दिव्यस्वरूप वाले हैं. ऐसे दिव्यस्वरूप वाले दिगंबर भगवान जो 'य'कार से सम्बोधित होते हैं उनको नमन है.  

कई पुस्तकों में इसे यज्ञस्वरूपाय भी लिखा गया है. सही क्या है यह कहना तो कठिन है. कहते हैं भगवान शिव के अनेक अवतारों में 'यक्ष' भी एक अवतार था जो उन्होंने देवताओं का गर्वहरण करने के लिए किया था और यज्ञ के जैसा स्वरुप भी एक महान उपमा है अतः इसे भी अनुचित नहीं ठहराया जा सकता. जैसा गुरु बताएं वही व्यक्ति को पढ़ना चाहिए.  

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

इस पंचाक्षरी स्तोत्र को जो भी भगवान शिव के सान्निध्य में पढता है (पाठ करता है) वह शिवलोक को जा कर भगवान शिव के साथ पा कर सुखी होता है. 
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    Author - Archit

    लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II
    ​

    ज्योतिष के विषय से मैंने इस वेबसाइट पर लिखना शुरू किया था परंतु ज्योतिष, धर्म और समाज को अलग अलग कर के देख पाना बड़ा कठिन है. शनैः शनैः मेरी यह धारणा प्रबल होती जा रही है कि जो भी संसार में हो चुका है, हो रहा है अथवा होने वाला है वह सब ईश्वर के ही अधीन है अथवा पूर्वनियोजित है. लिखना तो मुझे बाल्यकाल से ही बहुत पसंद था परंतु कभी गंभीरता से नहीं लिया. कविताएं लिखी, कहानियां लिखी, निबंध लिखे परंतु शायद ही कभी प्रकाशन के लिए भेजा. मेरी कविताएं और निबंध (जिनका संकलन आज न जाने कहाँ हैं) जिसने भी देखे, प्रशंसा ही की. यह सब ईश्वर की कृपा ही थी. धार्मिक क्षेत्र में मेरी रुचि सदा से ही रही है परंतु पुत्र होने के बाद थोड़ा रुझान अधिक हुआ है. ना जाने कब ईश्वर ने प्रेरणा दी और मैंने इस पर लिखना शुरू कर दिया.

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