सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई! देश के सभी शहीदों को श्रद्धांजलि और देश के सभी जवानों को नमन. देश तो हमारा १९४७ में ही स्वतंत्र हो गया था परंतु उसके साथ ही स्वतंत्रता की एक और लड़ाई भीतर ही भीतर प्रारम्भ हो गई. इस लेख में उन सब लड़ाइयों का वर्णन नहीं है जिससे आप पहले से ही अवगत हैं जैसे कश्मीर विवाद, पंजाब का संघर्ष, तमिल नाडु का हिंदी विरोध आदि. यह लेख कुछ अलग है. कुछ दिन पहले एक लड़की से मेरी बात हो रही थी. विषय था नौकरी किस शहर में करें. मैंने कहा अपने शहर में रह कर कुछ भी करना सर्वश्रेष्ठ है और नीतिसंगत भी. इस पर उसने उत्तर दिया - यहां तो मैं स्वतंत्र हूँ. अपने शहर वापस गई तो अपने घर में माता पिता के साथ रहना होगा. और माता पिता के साथ रही तो फिर वही सब शुरू हो जायेगा, ६ बजे से पहले वापस आ जाओ, दूरभाष (फ़ोन) पर मत लगे रहो, लैपटॉप मत करो, देर तक सोना ग़लत है सुबह जल्दी उठो आदि. घर पर आज़ादी कहाँ है? ऐसा सोचने वाली वह अकेली लड़की नहीं है. साधारणतः लड़कियों पर रोकटोक अधिक होती है तो अब बहुत सी लड़कियों ने इस से बचने का विकल्प शहर से बाहर निकल जाने के रूप में निकाल लिया है. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी. न माता पिता होंगे न रोकटोक होगी और प्रेम भी बना रहेगा अपितु दूर होने से बढ़ ही जायेगा. ऐसा नहीं कि लड़कों पर कोई रोकटोक नहीं होती. लड़कों पर भी बहुत मानसिक दबाव होता है. बहुत से लड़कों की अपने पिता से नहीं बनती और इस सबसे बचने का शांतिपूर्ण उपाय है दूसरे किसी शहर के महाविद्यालय में भर्ती हो जाओ. उन बहुत से लोगों में से कुछ, जो ऐसा नहीं कर पाते वे शिक्षण पूरा होने के बाद बाहर नौकरी ढूंढ लेते हैं. कई बच्चे जिन्हें अपने माता-पिता का बहुत रोकना टोकना सहन नहीं होता उन्हें भी कोई उपाय तो ढूंढना ही है. इसीलिए दो प्रकार आजकल बहुत चल रहे हैं. एक तो माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ देने का और नहीं तो माता पिता से अलग रहने का. जब अपनी संतान को माता पिता के उपदेश नहीं भाते तो भला बहू को कैसे भाएंगे. इसीलिए कई बहुएं अपने पति को अलग घर ले कर रहने की भी सलाह देती है जहां दोनों पति पत्नी स्वतंत्र रूप से जीवन यापन कर सकें. और माता पिता तो कहानी का पहला भाग है. बाद में अपने पति से, पत्नी से, बच्चों से, अधिकारी आदि से, सभी से समस्या होने लगती है. सभी पर अपना तंत्र तो चलता नहीं. यह भी एक कारण है कि इतने तलाक के किस्से सुनने में आ रहे हैं. जल्दी जल्दी नौकरी बदलने के पीछे भी पैसा मुख्य कारण नहीं है. जहां स्वतंत्रता का ह्रास होने लगता है व्यक्ति दूसरे विकल्प ढूंढने लगता है. परंतु नौकरी में भी कभी कोई स्वतंत्र हुआ है? स्वतंत्र तो हर कोई होना चाहता है. स्वतंत्रता की ही तो सारी लड़ाई है. जिसके जितना बस में है वो उतना स्वतंत्र हो जाता है. किसी भी देश में विदेशी शासन का विरोध होने के पीछे एक कारण यह भी है कि वह अपना तंत्र चलाना चाहते है जो उस देश के नागरिकों को रास नहीं आता और फिर स्वतंत्रता संग्राम होता है. परंतु देश स्वतंत्र हो जाने का अर्थ यह नहीं कि वहाँ के समस्त नागरिक भी स्वतंत्र हो गए. जीवन जब तक है स्वतंत्र होना कठिन है. कहीं न कहीं तो किसी न किसी पर निर्भर होना ही होगा. फिर वो चाहे धन के लिए हो, बल के लिए, प्रेम के लिए अथवा कुछ और के लिए हो. इसीलिए संत कह गए हैं कि संसार में किसी से मांगने से अच्छा प्रभु से मांगो अथवा प्रभु पर अपना जीवन सौंप दो. ईश्वर स्वयं सब कुछ देख लेगा. अजगर करे न चाकरी गिरगिट करे न काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम हिन्दू धर्म में जो आश्रम व्यवस्था थी वह स्वतंत्र होने का एक अनूठा प्रयोग था. ब्रह्मचर्य आश्रम में शिक्षा ग्रहण करो (प्रायः शिष्य को गुरु के स्थान पर ही रहना होता था), गृहस्थ आश्रम में गृहस्थी चलाओ, वानप्रस्थ में बस दर्शक बनो, किसी पर आसक्ति मत रखो और मोह से दूर होने लगो. व्यर्थ उपदेश मत दो. संन्यास की तैयारी करो और अंततः संन्यास आश्रम में प्रवेश कर जाओ. ऐसा करने से सबको अपने दायित्व का पता भी रहेगा और किसी को व्यर्थ का कष्ट भी नहीं होगा. सही अर्थों में स्वतंत्रता तो मन और आत्मा से मिलती है. यदि मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर में से किसी का निवास हुआ तो स्वतंत्र हो पाना कठिन है. हिन्दू धर्म में मोक्ष को सर्वाधिक महत्व है. मेरी दृष्टी में तो यदि किसी ने जीते जी इन सब से मुक्ति पा ली तो मोक्ष पा लिया. ऐसा करना बहुत कठिन है परंतु मनुष्य का धर्म प्रयास करना है, शेष सब ईश्वर इच्छा. चलते चलते श्रीमद्भगवद्गीता के दो श्लोक जो मुझे अत्यंत प्रिय है: अर्जुन भगवान कृष्ण से चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवदृढं । तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करं॥ भगवान कृष्ण अर्जुन से असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ भगवान कृष्ण से अर्जुन ने कहा कि मन बड़ा चंचल और बलवान है. इसे वश में करना तो मुझे वायु को वश में करने से भी कठिन लगता है. भगवान कृष्ण बोले - निस्संदेह मन बड़ा बलवान है परंतु हे अर्जुन! अभ्यास और वैराग्य से ऐसा संभव है. सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई! |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2019
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