गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे हे नारायण हे करुणाकर हे कृपासिंधु हे जगदीश्वर आर्त्तों और भक्तों की दृष्टि केवल तुम पर केवल तुम पर इतनी बुद्धि दे दो मुझको 'अर्चित' प्रातः स्मरण करे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे एक खूँटे से छूटा नहीं कि दूजे पर बन्ध जाता हूँ इसमें भी कोई बात नहीं जब तक तेरे गुण गाता हूँ दो इतना ही वरदान मुझे 'अर्चित' गाता स्वछंद फिरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे तुम सदा संग में रहते हो इतना तो जान मैं जाता हूँ दुनियादारी में पड़ कर पर तुम्हें बार बार बिसराता हूँ कुछ ऐसा आयोजन कर दो जहाँ देखूँ मुझको राम दीखे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे गोविन्द हरे |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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