पति से पीड़ित पत्नी जब अपने बच्चों के आगे अपने पति की निन्दा करती है तो वह बच्चों के मन में पिता के प्रति विष भरने जैसा काम करती है. यही बच्चा आगे चलकर माता पिता दोनों की अवहेलना करता है. फिर समाज में लोग कहते हैं बच्चे बुरे होते हैं जो अपने बड़ों का सम्मान नहीं करते. किन्तु वो बीज किसने डाले यह कोई नहीं पूछता. बस बच्चों पर दोष मढ़ देते हैं. एक बच्चे को उसके सम्बन्धियों से बहुत सुनने को मिलता था, "तेरा बाप दब्बू है. घर में ही रहता है. तेरा बाप तो कंजूस है. उसकी जेब से पैसा नहीं निकलता." जब वह बच्चा बड़ा हुआ तो उस बच्चे के मुँह से न केवल वही शब्द सुनने को मिले बल्कि वह बच्चा बड़ा होकर व्यर्थ पैसे उड़ाने वाला और गुण्डा बना. बच्चों के आसपास जो बड़े लोग हैं वह क्या बातें करते हैं उसका परिणाम बच्चों के मन पर बहुत गहरा होता है. लोग अपने सम्बन्धियों की निन्दा क्यों करते हैं? क्योंकि वह अपने बड़ों से इसे सीखते हैं और जो उन्होंने अपने बड़ों से सीखा है वह तो सही ही होगा. जितना अधिक या जीतना तीव्र अनुभव होता है उतने ही तीव्र परिणाम होते हैं. बढ़ते हुए वृद्धाश्रम अथवा माता पिता के प्रति बुरे बर्ताव का सारा ठीकरा बच्चों के सिर पर मढ़ना ठीक नहीं है. बच्चों को भी सख्त होना होगा. अपने बड़ों को कहना सीखना होगा कि मेरे आगे मेरे माता पिता की बुराई न करो. आप उनसे बड़े हो या उनके बराबर के हो तो आपको उन्हें कुछ भी कहने का अधिकार है परन्तु जो कहना है उनसे कहो. मुझे मत कहो. यदि मैं अभी आपका उल्टा सीधा वचन सुनता रहा तो फिर बड़े होकर मैं अपने माता पिता के प्रति दुर्व्यवहार करूँगा. तब इसके उत्तरदायी आप ही होंगे. पर उन्हें यह सिखाएगा कौन? यह सिखाने का काम यूँ तो गुरु का था परन्तु आज की शिक्षा व्यवस्था में नीति का पाठ कोई नहीं पढ़ाता. नीति की शिक्षा के लिए कोई विद्यालयों में कोई स्थान ही नहीं है. क्या उचित है क्या अनुचित यह कहीं सीखने को ही नहीं मिलता तो बच्चों के लिए तो जो बड़े कर रहे हैं वही सही है. ॥ हरिः ॐ॥ |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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