जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी. तुलसीदास ने तो यह भगवान राम के लिए कहा था परन्तु जन्मदिन को लेकर भी लोगों में कोई एक मत नहीं है. कोई इसे उत्सव जैसा मनाता है तो कोई दान धर्म आदि करता है. कोई मित्रमंडली को दावत देता है तो कोई परिवार के साथ बाहर खाने पीने निकल जाता है. हम हरिद्वार के लोगों का गंगाजी से विशेष लगाव होने से हम लोग अपने जन्मदिनों पर प्रायः गंगाजी के साथ कुछ समय बिताने का प्रयास अवश्य करते हैं. अन्यत्र कहीं हुए तो मन से ही ध्यान कर नमस्कार कर देते हैं. जन्मदिन के विषय में कुछ लोग कहते हैं, एक वर्ष ओल्ड (Old) हो गए, मृत्यु के और निकट पहुँच गए इसमें प्रसन्नता किस बात की. वैसे अंगेज़ी का 'ओल्ड' और संस्कृत का वृद्ध शब्द भले दीखते एक से हों परन्तु दोनों भिन्न अर्थ रखते हैं. "Old" का अर्थ है जो "Young" न हो. जो पुराना हो या जो लम्बे समय से जी रहा हों. "Young" व्यक्ति में जो गुण होते हैं वह जिसमें न हों". अंग्रेजी के अर्थ साधारणतः ऐसे ही हैं. "Healthy" अर्थात जो बीमार न हों. विचारधारा भौतिक है न. भौतिकवादी विचारधारा में इन्द्रियों से प्राप्त होने वाले सुख प्रमुख हैं और जैसे जैसे वय बढ़ता है इन्द्रियाँ शिथिल होती जाती हैं. वय जैसे जैसे बढ़ता है भोग विलास करने की जो क्षमता है वह घटती जाती है, रोग शरीर में डेरा जमा लेते हैं, शारीरिक बल घटने लगता है, त्वचा लटकने लगती है आदि. भोगियों के लिए तो यह अत्यंत चिंता का विषय हो जाता है. आपको ज्ञात ही होगा बीते कुछ वर्षों से एक नया चलन चला है. बहुत से लोग अपने जन्मदिन पर कहने लगे हैं, "मैं एक वर्ष जवान हो गया". खैर, दिल के बहलाने को ग़ालिब यह ख़याल अच्छा है. संस्कृत बड़ी ही सुन्दर भाषा है. संस्कृत में वृद्ध का अर्थ पुराना नहीं होता. हमारी संस्कृति में वृद्ध होना कोई संकोच की बात नहीं है. हमें तो गर्व होता है कि हम पल प्रतिपल वृद्ध हो रहे हैं. वृद्ध अर्थात् परिपक्व. वृद्ध अर्थात् अनुभवी. दूसरे शब्दों में - यदि कोई किसी से वृद्ध है तो वह गुणों में उस व्यक्ति से श्रेष्ठ है. अतः वृद्ध होना कोई बुरी बात नहीं. यही कारण है कि हमारे यहाँ विचार विमर्श करने के लिए वृद्धों से श्रेष्ठ किसी को नहीं समझा जाता. यह एक प्रमुख कारण है कि हिन्दू धर्म में आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) व्यवस्था की गयी. आज भौतिकवादी प्रवृत्तियों के बढ़ने से अहंकार बढ़ा है और वृद्धों का सम्मान कुछ (या कहें बहुत) घटा है परन्तु इससे वृद्धों की श्रेष्ठता कम तो नहीं हो जाती. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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