बहुत बड़ा परिवार नहीं है मेरा एक मैं हूँ, पति है और एक बच्चा यूँ तो यही संसार है मेरा सास ससुर कभी कभी आते हैं पर कुछ दिन ठहर कर लौट जाते हैं पढ़ी लिखी हूँ तो बार बार सुनने को मिलता है तू कहीं नौकरी क्यों नहीं करती? कोई मुझे बताये मैं क्यों नौकरी करूँ यहाँ अपने घर की मैं रानी हूँ क्यों किसी की नौकरानी बनूँ एग्जीक्यूटिव, मैनेजर, टीम लीड, वाईस प्रेजिडेंट अंग्रेजी में चाहे जो कहो वास्तव में है तो नौकरी ही और नौकरी में भी कभी सुखी हुआ है कोई लोग मुझे कहते हैं "तू क्यों घर के काम करती है बाई लगवा स्वयं बाहर काम कर और रुपये कमा क्योंकि सम्मान वही पाता है जो कमाता है" मैं कहती हूँ "मेरा पति इतना तो कमाता ही है कि हमारी आवश्यकतायें भी पूरी हो जायें और हमारे छोटे मोटे शौक भी अब यदि कोई लोभी हो, दुर्व्यसनी हो तो फिर कितना भी कमा ले धन से कोई समाधान नहीं होगा" घर पर ही रहूँगी ऐसी कोई हठ नहीं बाहर भी काम करूंगी जो गरज़ हुई पर अभी तो ऐसी कोई गरज़ नहीं घर के काम करती हूँ तो कोई छोटी नहीं हो जाती न ही किसी से कम हूँ एक ओर तुम कहते हो सबके कामों का बराबर सम्मान होना चाहिए भेदभाव मिटना चाहिए परन्तु काम क्या केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र या धन कमाने वाले लोग ही करते हैं गृहिणी के लिए क्यों यह बात तुम्हारे मुख से नहीं निकलती है गृहिणी तो सब धर्मों/वर्णों से ऊपर है वो बस अपने परिवार के लिए काम करती है ध्यान रखो मेरे काम का उद्देश्य बड़ा है रुपये कमाने तक सीमित नहीं है मैं और मेरे जैसी गृहिणियाँ समाज के निर्माण में लगी हैं अपने बच्चों को संस्कार देती हैं पढ़ी लिखी होने से शिक्षा भी देती हैं सही ग़लत की समझ देती हैं यही बच्चे आगे चलकर देश का भविष्य बनाते हैं और पति क्या किसी बच्चे से कम होता है बात बात में बिदक जाता है पति को भावनात्मक रूप से संभालना मेरे जैसी कोई गृहिणी ही कर सकती है और विश्वास करो यह कोई आसान काम नहीं यद्यपि हमें इस काम में कोई यश नहीं है परन्तु क्या नौकरियों में है? यह मेरे विचार हैं मैं ऐसा सोचती हूँ परन्तु अपने इन विचारों को नहीं किसी पर थोपती हूँ समय की मांग कभी हुई तो तब की तब देखी जाएगी लेकिन तब तक यह गृहिणी घर के काम करी जाएगी |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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