महर्षि पुलस्त्य महर्षि विश्रवा के पिता और राक्षसराज रावण के दादा थे. सब ओर उनका बड़ा सम्मान था. रावण भी अपना परिचय देते समय स्वयं को पुलस्त्य ऋषि का पोता और विश्रवा ऋषि का बेटा बताता था. रावण महापराक्रमी था और उसने बहुत बड़े बड़े वीरों को पराजित किया था परंतु ऐसा नहीं था कि उसे कभी किसी ने पराजित न किया हो. उसे पराजित करने वाले कुछ वीरों में सहस्त्रार्जुन का भी नाम लिया जाता है. एक समय था जब रावण हर जगह अपनी विजय पताका फहराने में लगा था. इसी बीच उसने कहीं से सहस्त्रार्जुन का नाम सुना तो उस पर विजय पाने की अभिलाषा से माहिष्मती पहुँच गया. माहिष्मती नगरी पर सहस्त्रार्जुन का शासन था. कहते हैं माहिष्मती में साक्षात् अग्निदेव निवास करते थे. संयोग की बात है कि जब रावण वहाँ पहुँचा तो सहस्त्रार्जुन (जिसे सहस्त्रबाहु अथवा अर्जुन भी कहते थे) अपनी स्त्रियों के साथ नर्मदा के पवित्र जल में विहार करने गया हुआ था. जब रावण ने सहस्त्रार्जुन को वहाँ न पाया तो अपने साथियों के साथ विंध्याचल पर्वत की ओर चला गया. नर्मदा नदी की पवित्रता, आसपास का वातावरण, और मंद मंद चलने वाली शीतल पवन ने उसका मन मोह लिया. उस समय नर्मदा नदी उसे बड़ी कल्याणकारी लगी. हिन्दू धर्म में जल को सदा से ही बड़ा आदरणीय स्थान प्राप्त है. पवित्रता के साथ जल का नाता अटूट है. रावण की भी इच्छा हुई कि स्वयं को पवित्र करे और ईश्वर का अर्चन करे. उसने अपने अनुयायी राक्षसों से स्नान करने को कहा और स्वयं भी नर्मदा नदी में स्नान किया. रावण राक्षस था, अहंकारी था, और दुराचारी भी था परंतु भगवान शिव का बड़ा भक्त था. उसने अपने राक्षसों से कहकर सुगन्धित पुष्पों की व्यवस्था कराई और शिवलिंग की पूजा अर्चना आरम्भ की. अभी उसकी पूजा समाप्त भी न होने पायी थी कि नर्मदा का पानी तट के ऊपर से बहने लगा. जो नदी थोड़ी देर पहले तक बड़े ही शांत वेग से बह रही थी वह सहसा ही तट के ऊपर को हो कर भला क्यों बहने लगी. जलस्तर के यों अचानक बढ़ जाने से किसी का तट पर रुकना संभव न हुआ. महाबलशाली रावण को भी अपनी पूजा बीच में ही छोड़ उठना पड़ा. परंतु यह प्रकरण अधिक समय नहीं चला. थोड़ी ही देर में नर्मदा अपनी स्वाभाविक गति और जल स्तर से बहने लगी. रावण के मन में विचार आया कि यह सहज नहीं है. इस सब में कुछ न कुछ तो कारण है. उसने शुक और सारण को इसका कारण पता लगाने को कहा. शुक और सारण ने सभी ओर खोजा तो पाया कि रावण जहाँ पूजन कर रहा था वहाँ से कुछ दूर कोई उसी नदी में कई स्त्रियों के साथ विहार कर रहा था. वह सहस्त्र भुजाओं वाला देखने में ही कोई बलशाली वीर जान पड़ता था. जब जब वह अपने हाथों को नर्मदा नदी के प्रवाह के रास्ते में लाता तो नदी का प्रवाह नियत स्थान से न हो कर कहीं और ही से होने लगता. यही कारण था कि नर्मदा का जल तट को भी पार करके बहने लगता था. शुक और सारण ने जो देखा था वह रावण से कहा. विवरण सुन कर रावण समझ गया कि वह कोई और नहीं सहस्त्रबाहु ही है और अब उसे इस धृष्टता का दण्ड देने का समय आ गया है. उसने चिंता नहीं की कि जल विहार करते हुए किसी व्यक्ति से युद्ध करना कितना उचित होगा. उचित अनुचित का विचार वैसे भी वह कम ही करता था. अपनी सेना के साथ जब रावण वहाँ पहुँचा तो मार्ग में ही उसे सहस्त्रबाहु के लोगों ने रोक लिया. परंतु रावण तो रावण था. ऐसे ही कोई भी तो उसे रोक नहीं सकता था. उसने रोकने वालों को ही यमलोक पहुँचा दिया. जो भी मार्ग में आता रावण उसे उचित दण्ड देता. इतने में ही इस सब उत्पात की सुचना किसी ने सहस्त्रबाहु को पहुँचा दी. सहस्त्रबाहु भी महावीर था. उसने तनिक भी क्लेश न किया और युद्ध के लिए तैयार हो गया. उसने स्त्रियों को सुरक्षित किया और अपनी भयंकर गदा ले कर रावण के सम्मुख जा पहुंचा. दोनों में घमासान युद्ध हुआ. रावण के दस सर थे तो सहस्त्रार्जुन के पास सहस्त्र भुजाओं का बल था. युद्ध चलता रहा और जब अर्जुन (सहस्त्रार्जुन) ने रावण की छाती पर गदा का प्रचण्ड प्रहार किया तो रावण तो (ब्रह्मा के वरदान के प्रभाव से) मरा नहीं परन्तु गदा अवश्य खंडित हो गई. वार इतना घातक था कि रावण जैसा योद्धा भी धक्के से पीछे को हो गया और पीड़ा से बिलबिलाने लगा. मात्र इतने ही समय में सहस्त्रार्जुन ने रावण को बंदी बना लिया और अपने महल में ले गया. बंदी बना रावण कुछ भी नहीं कर सकता था. उसका वध ही तो नहीं हो सकता था परंतु उसे बंदी तो बना कर रख ही सकते थे. रावण वहाँ बंदी बन कर कुछ समय रहता रहा. इधर जब महात्मा पुलस्त्य जी को रावण के इस हाल में होने का पता चला तो उन्हें बड़ा मोह हुआ. वे स्वयं सहस्त्रबाहु से रावण की रक्षार्थ मिलने पहुंचे. सहस्त्रबाहु को जब पता चला कि परम तेजस्वी पुलस्त्य जी स्वयं पधारे हैं तो उसने बड़े ही सम्मान के साथ उनका स्वागत किया. पुलस्त्य जी ने उसे अपने आने का हेतु बताया और रावण को मुक्त करने की प्रार्थना करी. सहस्त्रबाहु तो महाबली था ही. उसने रावण को परास्त भी कर दिया था. उसने बिना किसी शर्त के रावण को मुक्त कर दिया. इस घटना के बाद रावण और सहस्त्रार्जुन में मैत्री हो गयी. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
Categories
All
|