इस बार संयोग से मकर संक्रांति शनिवार को है. यमराज और यमुना की ही भाँति शनिदेव भी सूर्य के ही पुत्र है. ज्योतिष के अनुसार शनि सूर्य को शत्रु समझते है परंतु सूर्य को शनि से कोई बैर नहीं. पिता भी भला पुत्र से कभी बैर रखता है? वैसे पिता पुत्र के कई गुण मिलते जुलते हैं. शनि परम शिवभक्त हैं और सूर्य को शिव ने अपनी अष्टमूर्तियों में से एक बताया है. अतः भगवान शिव की निर्मल भक्ति से शनि और सूर्य दोनों को ही प्रसन्न किया जा सकता है. न्यायप्रियता और धर्मपरायणता तो सूर्य के दोनों ही पुत्रों में देखने को मिलती है. सूर्य भी अपने भक्तों पर कृपा करने वाले हैं. अज्ञातवास के समय द्रौपदी के पास जो अक्षयपात्र था वह उसे सूर्य की आराधना से ही प्राप्त हुआ था. उस पात्र की विशेषता यह थी कि जब तक द्रौपदी भोजन न कर ले उस पात्र में से कितना भी और कितने भी लोगों को भोजन कराया जा सकता था. सूर्य के भ्रमण को ध्यान में रखते हुए यदि एक वर्ष को दो भागों में बाटें तो वे दो भाग उत्तरायण और दक्षिणायन कहलायेंगे. मकर संक्रांति से उत्तरायण प्रारम्भ होता है अतः इसे उत्तरायण की संक्रांति भी कह सकते हैं. व्रत, दान, स्नान आदि के लिए यह एक विशेष काल है. ऐसे में यदि किसी श्रद्धालु को गंगास्नान का सौभाग्य प्राप्त हो जाये तो उससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है. गंगाजी की महिमा के सम्बन्ध में आदि शंकराचार्य ने तो यहाँ तक कहा है कि गंगातट पर दीन हीन हो कर यहाँ तक कि गिरगिट बन कर रहना अच्छा परंतु गंगाजी से दूर रह कर तो राजा होना भी अच्छा नहीं. इससे मिलती जुलती बात वाल्मीकिजी ने भी कही है. प्रायः हम यह सुनते है कि सूर्योदय के समय गंगास्नान अत्यंत लाभकारी है परंतु नारद पुराण के अनुसार दोपहर के समय किया हुआ गंगास्नान प्रातःकाल के किये हुए स्नान से अधिक पुण्यदायी होता है. सबसे अधिक फल सायंकाल के समय किये हुआ स्नान का कहा गया है. सूर्य की किरणों से तपे हुए जल से किये गए स्नान को विशेष पुण्यदायी बताया गया है. कहते हैं भगीरथजी और उनके पूर्वजों की तपस्या के फलस्वरूप जब गंगाजी पृथ्वी पर आईं तो भगवान सूर्य ने उनकी स्तुति की थी. मूलतः हरिद्वार का निवासी होने के कारण गंगाजी के प्रति हम लोगों का लगाव कुछ अधिक ही है परंतु जिसने भी हरिद्वार में रहकर गंगाजी के सान्निध्य में कुछ समय बिताया है वह गंगाजी के आलौकिक प्रभाव को समझ ही सकता है (समझा नहीं सकता क्योंकि समझाना तो बहुत कठिन है). |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
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