कल रात उसकी मृत्यु से भेंट हुई पर वह डरा नहीं हाँ शारीरिक पीड़ा बहुत थी जिससे वह कराहा बहुत पर वह डरा नहीं अपने कराहने को उसने ईश्वर के भजन में बदल दिया आह कहने की अपेक्षा राम कहने लगा रोग विचित्र था लगता था मानों कोई हाथ डालकर कलेजा बाहर निकालना चाहता हो ना चाहते हुए भी छाती वाला भाग बार बार ऊपर उठता था जैसे कोई पकड़ कर खींच रहा हो कब प्राण निकलें इसी की प्रतीक्षा रह गयी थी बस वह भाग्यवान था क्योंकि ईश्वर की कृपा से उसे उस समय एक ईश्वर का ही स्मरण हुआ अन्य किसी का नहीं उसे लगा यात्रा का एक पड़ाव पूरा हुआ अब आगे बढ़ने का समय आ गया इस जीवन से निकलकर एक नए जीवन को जाने का समय आ गया आज नहीं तो कल हम बात करें या न करें मृत्यु तो आनी ही है तो फिर उसका स्वागत क्यों न किया जाये उसने ईश्वर से प्रार्थना की हे देव! जैसे अभी मैं आपको स्मरण कर रहा हूँ ऐसे ही मैं सदैव आपका चिंतन करूँ जब कोई प्राणी नया जन्म लेता है तो सब भूल जाता है यही वरदान दो कहीं भी जन्म लूँ बस आपको न भूलूँ बाकी जहाँ ले चलना है ले चलो भावातिरेक में जाने क्या क्या प्रार्थनायें करता रहा कदाचित् पूरी रात राम राम बड़बड़ाता रहा इस बीच कब सोया पता नहीं सवेरे उठा तो उसी शरीर में था संभवतः ईश्वर उसकी परीक्षा ले रहे थे शरीर को स्वस्थ पाया तो उसने रात का ज्ञान रात के अँधेरे में ही कहीं छोड़ दिया सुबह और काम भी तो होते हैं अतः अपने तय कामों में लग गया |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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