क्या कभी आपके घर पर कोई डाकपत्र (पोस्टकार्ड) आया है जिसमें धार्मिक विषय से जुड़ा कुछ अविश्वसनीय सा लिखा हो और साथ ही यह भी लिखा हो कि ऐसे ही ११, २१, ५१ अथवा जितने भी और पत्र लिख कर लोगों को भेजिए तो घर में समृद्धि होगी. यदि ऐसा नहीं किया तो परिणाम भयानक होंगे. यदि आपको याद नहीं तो अपने परिवार के बड़े लोगों से पूछिये. यह उन दिनों की बात है जब मोबाइल फ़ोन और इन्टरनेट नहीं हुआ करते थे.
इसी से जुड़ा हुआ एक और प्रकार उन दिनों चला करता था. कहीं मंदिर के बाहर, किसी भंडारे के निकट अथवा किसी मेले में कोई एक व्यक्ति ढेर सारी पर्चियां ले कर खड़ा होता था और हर आने जाने वाले को निःशुल्क बाँट देता था. कोई तो उसे पढ़ कर फाड़ देता था और कोई उसे पढ़ कर घबरा उठता था कि अब उसे भी पर्ची बांटनी होगी. कभी कभी तो भूले से वो पर्ची एक ही आदमी के पास दो तीन बार आ जाती थी. उस पर्ची में भी ऐसा ही कुछ डरावना लिखा होता था और वह बेचारा व्यक्ति पता नहीं कहाँ से पर्चियां छपवा कर अनजान लोगों में बांटता फिरता था. ऐसा ही एक सन्देश आज मेरे पास भी आया तो मैंने सोचा क्यों न इस पर कुछ पड़ताल करी जाये. यदि आप कभी चेन्नई आये हों तो एक बात आपको अवश्य पता होगी. यहाँ के लोग बहुत से शब्दों के अंत में "आ" की ध्वनि लगा देते हैं. फिर चाहे वह शब्द अंग्रेजी का हो, हिंदी का अथवा किसी और भाषा का. उदहारण के लिए "(कोल्ड) Cold" के स्थान पर "(कोल्डा) Coldaa", (cream) क्रीम के स्थान पर "क्रीमा (creamaa)", "रोड़" के स्थान पर "रोड़ा" आदि का तमिल लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता है. यह तो अंग्रेजी के शब्द हुए परंतु हिंदी में तो बहुत से शब्दों का अर्थ कुछ और ही हो जायेगा.
महाभारत घर में रखने को ले कर मुख्यतः दो प्रकार की बातें सुनने में आती हैं: १) इसे घर में न रखो, गृहक्लेश बढ़ेगा, २) यह सब अन्धविश्वास है. मेरे मन में सदा से ही इस पर कुछ लिखने की इच्छा थी परंतु ईश्वर ने प्रेरणा आज दी है अतः आज इस विषय पर कुछ विचार रखने का प्रयास करता हूँ.
सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई! देश के सभी शहीदों को श्रद्धांजलि और देश के सभी जवानों को नमन. देश तो हमारा १९४७ में ही स्वतंत्र हो गया था परंतु उसके साथ ही स्वतंत्रता की एक और लड़ाई भीतर ही भीतर प्रारम्भ हो गई. इस लेख में उन सब लड़ाइयों का वर्णन नहीं है जिससे आप पहले से ही अवगत हैं जैसे कश्मीर विवाद, पंजाब का संघर्ष, तमिल नाडु का हिंदी विरोध आदि. यह लेख कुछ अलग है.
नागों के बिना हिन्दू धर्म की चर्चा अधूरी हैं. फिर चाहे वो समुद्र मंथन में वासुकि नाग का सहयोग हो, भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन करना, भगवान शिव का नागों को शरीर पर धारण करना हो या कुछ और. नागों में कुछ विशेष शक्ति तो है इसीलिए हिन्दू धर्म में इतने गहरे सम्मिलित हुए हैं. भगवान राम और लक्ष्मण भी यदि बंधे तो नागपाश से ही बंधे. कहते हैं कुंडलिनी भी सर्पाकार होती हैं. ज्योतिष में जो योग सबसे भयानक समझे जाते हैं उनमें से एक सर्पों से ही सम्बंधित है (कालसर्पयोग).
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Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2019
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