तो बिनु जगदम्ब गंग कलिजुग का करित? घोर भव अपारसिन्धु तुलसी किमि तरित॥ तुलसीदासजी कह गए हैं कि पहले ही कलियुग में इतना उत्पात मचा हुआ है और ऐसे में यदि गंगाजी न होती तो कलियुग ने न जाने और क्या किया होता. बिना गंगाजी की कृपा के तुलसीदास इस घोर भवसिंधु से कैसे पार होता. गंगाजी की महिमा में कहे गए महात्मा तुलसीदासजी के यह शब्द कोई अतिश्योक्ति नहीं हैं. पुराणों में तो गंगाजी की बहुत महिमा गाई गयी है. नारद पुराण में गंगाजी को (कलियुग में) सभी तीर्थों में श्रेष्ठ बताया गया है. वैसे आपने भी यह अनुभव तो किया ही होगा कि गंगाजी के जल का स्पर्श तो दूर की बात, उनके दर्शन मात्र से ही मन की चञ्चलता जाने कहाँ खो जाती है. गङ्गा नाम परं सौख्यं गङ्गा नाम परं तपः । गङ्गेति संस्मरन्नित्यं स्य नास्ति यमाद्भयं ॥ श्रीमहाभागवतपुराण पुराण के अनुसार गङ्गा माता का नाम ही परम सुख और परम तप है. जो गङ्गा का नित्य स्मरण करता है उसे यमराज का भय नहीं रहता. गङ्गा गङ्गेति यो ब्रूयाद् योजनानां शतैरपि । मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति॥ गंगाजी के विषय में प्रसिद्ध है कि जो गंगाजी का नाम सहस्त्रों योजन दूर से भी उच्चारा करते हैं उन्हें भी सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है तथा वे अंत में विष्णुलोक को जाते हैं. पुराणों में गंगाजल को जलरूप में साक्षात् भगवान विष्णु ही बताया गया है. प्राचीन कवियों और ऋषियों ने भी गङ्गाजी की स्तुति गायी है फिर वह चाहे महकवि कालिदास हों, आदि शंकराचार्य अथवा महर्षि वाल्मीकि. गङ्गा की स्तुति सभी ने की है. जिन दिनों मैं हरिद्वार में रहा करता था, सुनता था कि बहुत से बच्चे (और कुछ बड़े भी) जब बहुत अशांत हो जाते थे (किसी भी प्रकार के क्लेश से या किसी और कारण) तो गंगा किनारे जा कर बैठ जाते थे. जो घर छोड़ कर भाग जाते थे उनमें से अधिकांश कहीं न कहीं गंगा किनारे ही मिलते थे. कितने ही दुकानदार आज भी रात को दुकान बढ़ाने के बाद और घर जाने से पहले का समय गंगाजी के किनारे टहलते हुए बिताते हैं. गंगातट पर पूजन करने की विशेष महिमा है. फिर वह चाहे शिव का पूजन हो, भगवान विष्णु का, सूर्य का, श्री गणेश का अथवा देवी का. कहते हैं जो संध्यावंदन (गायत्री की उपासना) गङ्गा तट पर किया जाये वह कहीं और करने से कहीं गुना अधिक फलदायी होता है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गङ्गा दशहरा के नाम से जाना जाता है. लाखों की संख्या में लोग इस दिन गङ्गा स्नान के उद्देश्य से तीर्थों पर जाते हैं. नारद पुराण में गङ्गा दशहरे के दिन जो गङ्गा जी की पूजा का मंत्र मिलता है वह इस प्रकार है: ॐ नमो दशहरायै नारायण्यै गंगायै नमः। |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
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